Sunday, December 8, 2013

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म्हाडा अधिकारियों की वजह से प्रतिक्षानगर(सायन) के रहवासी हो रहे हैं परेशान

म्हाडा अधिकारियों की वजह से प्रतिक्षानगर(सायन) के रहवासी हो रहे हैं परेशान
विकास और सुविधाएं ना करने से प्रतिक्षानगर तब्दील हो रहा है स्लम एरिया में

मुंबई(पिट्स प्रतिनिधि) : प्रतिक्षानगर यह सायन ईस्ट काऐसाभाग है जहां म्हाडा ने अपनी बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी की हैं. सारे मुंबई में म्हाडा को यह बहुत बड़ी जगह मिली है. जहांपर क्षेत्र विकास का बड़ा एरिया मिला है.यहां पर संक्रमण शिबिर और म्हाडा लॉटरी द्वारा निकाले गए घरों में बड़े पैमाने पर लोग रहते हैं. परंतु म्हाडा द्वारा लोगों को सिर्फ यहां पर घर दिए गए हैं क्योंकि सुविधा और विकास के नाम पर यहां ठन ठन गोपाल जैसीअवस्था बनी हुई है. इसके लिए जिम्मेदार म्हाडा के कार्यकारी अभियंता शहर मुंबई मंडल और मुख्य कार्यकारी अधिकारी है.

प्रतिक्षानगर में जब से संक्रमण शिबिर और अन्य बिल्डिंगे बनाई गई हैं तब से यहां पर ना भाजी मंडी और ना अन्यमार्केट दिख रहे हैंजो भी एक्का-दुक्का हैं उसकी हालत बद से बदतर है औरमार्केट चल रहे हैं वह गैरकानूनी तरीके से चल रहे हैं. यहां पर ड्रेनेज सिस्टम इतना खराब है कि जब भी बारिश होती हैतब पूरे प्रतिक्षानगर के रस्तों पर 2 से3फुट पानी भर जाता है. यहां पर सार्वजनिक शोचालय कहीं पर नहीं है जिसकी वजह से पूरे प्रतिक्षानगर में दुर्गंध फैल गई है इसका असर यहां के लोगों पर हो रहा है. मलेरिया, डेंगु और अन्य बिमारियों से लोग जूझ रहेहैं.

अगर यहां के स्ट्रीट लाईटों की बात करें तो यह कभी-कभी स्ट्रीट पर लाईट देखने को मिलती है. अगर इसका उदाहरण देखने जाए तो प्रतिक्षानगर बिल्डिंग न L-7 के सामने जो रस्ताशास्त्रीनगर तकगया है उस रस्ते पर बिजली के खंबेलगाए हुए एक साल से ज्यादा का समय हो गया है फिर भी यहां पर लाईट नहीं आई हैतो क्या प्रशासन नींद में है या जब तक कोई शिकायत नहीं करेगा तब तक यह अधिकारी सोते रहेंगे.क्योंयह लोग अपनी जिम्मेदारी एक दूसरे के कंधो पर डालकर पत्थर के निचे सेअपना हाथ सही सलामत हटा लेना चाहते हैं.

जब यहां की नगरसेविका प्रणितावाघधरे ने हमको एक पत्र दिया जो शहर अभियंतामुंबई मंडल का है, जिसे पढ़ते वक्त ऐसा लगता है कि हम कर रहे हैं,हम करेंगे, इन्हें बताया है, जल्द होनेवाला है, यह इसका, उसका काम है, इस तरह की कहानियों को लिखा गया है. प्रतिक्षानगर की लगभग सभी बिल्डिंगेंबी.जी.शिर्के ने बनाई है. यहां पर आज भी नाला सफाईसही ढंग से नहीं होती है और कचरे के ढेर लगे हुए हैं. जिसे म्हाडा के अधिकारी लिखते हैं कि इसकी जिम्मेदारी बी.जी.शिर्के कंपनी को दी हुई है. ऐसा यह कहते हैं परंतु असल में ऐसा नहीं देखने को मिल रहा है. सबकी मिलीभगत सेआज प्रतिक्षानगर एक स्लम एरिया में तब्दील होने को तैयारहै. अगर जल्द से जल्द इन समस्याओं का निपटारा अगर म्हाडा और बी.जी.शिर्के कंपनी के द्वारा नहीं हुआ तो प्रतिक्षानगर की नगरसेविका अपनेस्थानीय लोगों को साथ में लेकर म्हाडा पर मोर्चा लेकर जानेवाले हैं. तब इन सबसमस्याओं केजिम्मेदारअधिकारियों को लोगों के प्रश्नों का जवाब देना पड़ेगा.

प्रकाश वाघधरे(शाखा प्रमुख,शिवसेना, प्रतिक्षानगर) : हम म्हाडा के अधिकारियों को सुविधा मुहैय्या करने के लिए बार बार पत्र लिखते हैं परंतु लोगों की छोटि-छोटी मांगों को इनके द्वारा पूरी नहीं की जाती है. आज पूरे प्रतिक्षानगर में ड्रेनेज सिस्टम, लाईट, मार्केट और शोचालयों के नाम पर सुविधाओं का अभाव है. ऐक दूसरे के कंधों परबंदूक रखकर काम किया जा रहा है. जिम्मेदारी का एहसास शायद अधिकारी भूल गए हैं. लिखे गए पत्र को अधिकारियों द्वारा 3 महीने बाद जवाब दिया जा रहा है, इतनी तत्परतावह दिखा रहे हैं यह बड़े दुख की बात है.

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भारतीय हैं अपनी नौकरी को लेकर अनिश्चित, कतरा रहे हैं ऋण लेने से

नई दिल्ली : उद्योग मंडल एसोचैम के एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई हैकि अर्थव्यवस्था में सुस्ती तथा तथा नौकरी को लेकर अनिश्चितता की वजह भारतमें लोग बैंकों से कर्ज लेने से कतरा रहे हैं. सर्वेक्षण में कहा गया है कि आर्थिक सुस्ती की वजह से जहां औद्योगिक वृद्धि एवं सेवाएं प्रभावित हुई हैं, वहींखर्च करने वाले युवाओं में नौकरी को लेकर अनिश्चितता बढ़ी है.

गौरतलब हे कि जब बैंकों से ऋण लेने की बात आती है, तो भारतीय का रूख काफी संकीर्ण हो जाता है. वे मियादी जमा, शेयर या बांडों के बदले ऋण नहीं लेना चाहते. बैंकिंग आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष में सावधि जमा(एफडी) के बदले कर्ज लेनेवाले लोगों की संख्या में 1.6 प्रतिशत की गिरावट आई है. इसके अलावा क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करने वाले लोग भी ऋण नहीं लेना चाहते क्योंकि बकाए के भुगतान पर काफी उंचा ब्याज लिया जाता है. पहले से ऋण ले चुके लोग भी सतर्कता का रूख अपना रहे हैं और वे जुर्माने से बचने के लिए समय पर अपने बकाए का भुगतान कर रहे हैं.

सर्वेक्षण के अनुसार लोगों को लगता है कि क्रेडिट कार्ड के बकाया से वे ऋणके जाल में फंस जाएंगे. कुछ इसी तरह का रूख निजी लोगों या इकाइयों द्वारा शेयर या बांड गिरवी रखकर बैंक ऋण लेने में दिखाई दे रहा है. एसोचैम के मुताबिक, शेयर या बांड गिरवी रखकर ऋण लेने की राशि में चालू वित्त वर्ष में 6.6 फीसद की गिरावट आई है. वहीं पिछले वित्त वर्ष में इस मद में 8.8 प्रतिशत का इजाफा हुआ था. सर्वेक्षण में कहा गया है कि बैंकों द्वारा लिए जाने वाले उंचे ब्याज की वजह से भी लोग कर्ज नहीं लेना चाहते हैं. वहीं दूसरी ओर नकदी की कड़ी स्थिति के मद्देनजर हाल के समय में जमा पर ब्याज दरबढ़ाई गई है. इसके अलावा बैंक की नकदी संकट झेल रही बड़ी कंपनियों को कर्ज नहीं देना चाहते.

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जादूटोणा विरोधी कायदा हिवाळी अधिवेशनात मंजूर करणार – मुख्यमंत्री

मुंबई : जादूटोणा विरोधी कायदा राज्यात लागू करण्यासाठी राज्यशासनाने अध्यादेश जारी केला आहे. हा कायदा नागपूर हिवाळी अधिवेशनात मंजूर करुन या अध्यादेशाचे रुपांतर कायद्यात करण्यासाठी शासन कटिबद्ध असल्याचे मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण यांनी सांगितले.

यशवंतराव प्रतिष्ठान कायदे विषयक सहाय्य व सल्ला फोरम, मुंबई व महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मलून समिती यांच्या संयुक्त विद्यमाने जादूटोणा विरोधी अध्यादेशावर यशवंतराव चव्हाण प्रतिष्ठान येथे मंगळवारी परिसंवाद आयोजित करण्यात आला होता. या परिसंवादाच्या उद्घाटनप्रसंगी प्रमुख पाहुणे म्हणून मुख्यमंत्री बोलत होते. याप्रसंगी सामाजिक न्याय मंत्री शिवाजीराव मोघे, माजी न्यायमूर्ती चंद्रशेखर धर्माधिकारी, महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समितीचे राज्य कार्याध्यक्ष अविनाश पाटील, म.बा.पवार, तसेच ॲङ निलेश पावसकर, मुक्ता दाभोळकर, विविध संघटनांचे प्रतिनिधी उपस्थित होते.

मुख्यमंत्री म्हणाले, जादूटोणा विरोधी कायदा करण्यासाठी मंत्रीमंडळाने या कायद्याच्या मसुद्याला मान्यता दिली हा पहिला टप्पा ठरला. त्यानंतर हा कायदा लागू होण्यासाठी शासनाने अध्यादेश जारी केला असून राज्यात या कायद्याअंतर्गत काही ठिकाणी गुन्हे सुद्धा दाखल करण्यात आलेले आहेत. या अध्यादेशाचे रुपांतर कायद्यात करण्यासाठी शासनामार्फत प्रयत्न करण्यात येत आहेत. यामध्ये विविध संघटना, राजकीय पक्ष यांच्याशी विचार विनिमय करण्यात येत आहे. येत्या हिवाळी अधिवेशनात विधिमंडळात या अध्यादेशाचे रुपांतर कायद्यात करण्यास शासन कटिबद्ध असल्याचे सांगून मुख्यमंत्री पुढे म्हणाले की, या कायद्याची अंमलबजावणी करण्यासाठी दक्षता अधिकारी नेमण्याची प्रक्रिया पूर्ण करण्यात आली आहे. हा कायदा पारित केल्यामुळे विकसनशील देशामध्ये एक आदर्श निर्माण होईल. इतर राज्यात आणि देशात या कायद्याची अंमलबजावणी करणे सोपे होईल. या कायद्याची अंमलबजावणी करण्यासाठी प्रशासकीय यंत्रणेची मानसिकता सुद्धा महत्वाची आहे. समाजात विज्ञानाधिष्टीत दृष्टीकोन निर्माण करणे अत्यंत आवश्यक आहे, असेही मुख्यमंत्र्यांनी यावेळी सांगितले.

यावेळी बोलताना माजी न्यायमूर्ती चंद्रशेखर धर्माधिकारी म्हणाले की, कुठलाही कायदा हा समाज परिवर्तनाचा मार्ग मोकळा करतो. लोकशाहीत परिवर्तन हवे असेल तर आपल्याला कायद्याचे राज्य हवे आहे. नवपरिवर्तन समाज निर्माण करायचा असेल तर शोषणाच्या मार्गाच्या मुळाशी जाऊन विचार करुन शोषणाविरुद्ध लढाई केली पाहिजे, असे सांगून अंधश्रद्धेला महिला मोठ्या प्रमाणात बळी पडतात. विश्वास, श्रद्धा आणि अंधश्रद्धा यातील फरक ओळखला पाहिजे. सामाजिक गुन्हे आणि व्यक्तीगत गुन्हे यामध्ये फरक केला पाहिजे. समाजातील हे प्रश्न सोडविण्यासाठी सामाजिक दृष्टीकोनातून पाहिले पाहिजे, असेही त्यांनी यावेळी सांगितले.

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हेल्थ टिप्स – किशोरावस्था की कुछ आदतें होती हैं बांझपन के लिए जिम्मेदार

विशेषज्ञोंने किशोरावस्था की 6 बुरी आदतों की पहचान कर ली हैजिनसे आगे चलकर गर्भधारण में कठिनाई उत्पन्न होती है. प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में किशोरावस्था एक विशिष्ट एवं बेफिक्री वाला समय होता है. अपनी किशोरावस्थाके कारनामों के बारे में पूछे जाने पर हम में से ज्यादातर लोग एक आश्चर्यजनक सुनहरे अतीत की यादों में खो जाते हैं. मौज-मस्ती से भरपूर जीवन बिताने के तमाम विकल्प मौजूद होने के कारण मौजूदा दौर के युवाओं के लिए इन विकल्पों में चयन कर पाना कठिन हो रहा है. विदेशी भोजन एवं विदेशी स्टाइलवाले रेस्तरां, फ्यूचरिस्टिक फिल्मों में पाए जाने वाले बेहतरीन गेम्स एवं गैजेट्स की उपलब्धता और अध्ययन के लिए सुविधाजनक विकल्प आज के किशोरों के लिए उपलब्ध तमाम विकल्पों में से हैं लेकिन जिंदगी में आगे चलकर यदि यही यादगार एवं आनंददायी अनुभव आपकी प्रजनन क्षमता में कमी या प्रजनन अक्षमता (बांझपन) का कारण बन जाए तो क्या होगा?

यहां पेश हैं किशोरों द्वारा कीजाने वाली 6 ऐसी प्रमुख गलतियां, जिनमें भविष्य में गर्भधारण की संभावना कम हो जाती है.

मोटापा प्रभावी मुद्दा : किसी भी पार्टी या उत्सव की हाइलाइट हमेशा भोजन होता है लेकिन पार्टियों याउत्सवों में खिलाया जाने वाला भोजन तला-भुना एवं पनीर या शक्कर से सराबोरतथा स्वास्थ की नजर से बहुत ज्यादा हानिकारक होता है. इस तरह के भोजन का आनंद कभी-कभार लिया जाएतो सही है लेकिन वर्तमान में टीनएजर्स (किशोरवय) के लिए आज ऐसा भोजन आदतबन गया है. इस तरह के भोजन से न सिर्फ आपकी कमर पर अतिरिक्त चर्बी जमती हैबल्कि आपकी प्रजनन क्षमता पर भी बुरा असर पड़ता है. सिर्फ इतना  ही नहीं, डाक्टरों का कहना है कि पेट के मोटापे और इंसुलिन के बढऩे का संबंध हार्मोन संबंधी एक जटिल समस्या से हो सकता है, जिसे पी.सी.ओज(पाली सिस्टिकओवेरियन सिंड्रोम) कहते हैं. यह महिलाओं में बांझपन का एक प्रमुख कारण है और इसके लक्षण किशोरावस्था में ही नजर आने लगते हैं. ऐसे मामलों में हार्मोन परीक्षण करवाना और स्वस्थ एवं सक्रिय जीवनशैली अपनाना ही एक मात्र उपाय होता है. अधिक वजन से निजात पाने के लिए विशेषज्ञ घर पर बना भोजन करने एवं साधारण व्यायाम की सलाह देते हैं.

भोजन संबंधी विकार एवं कमियां : अधिक वसायुक्त भोजन का खूब सेवन करना एक समस्या है लेकिन एक अन्य समस्या भी है, जो उतनी ही खतरनाक है. पत्र-पत्रिकाओं के मुखपृष्ठ पर छपनेवाली परफेक्ट 10 फिगर वाली आकर्षक मॉडल्स को देखकर सभी वैसा ही बनने के लिए प्रेरित होते हैं. इन मॉडल्स के जैसा बनने के लिए तमाम किशोरियां क्विकफिक्स डाइट्स एवं भूखे रहने का सहारा लेती हैं. इसे भोजन ग्रहण संबंधीविकार कहा जाता है और अत्यधिक भूखा रहने (एनोरेक्सिया नर्वोसा) से लेकरबिंग ईटिंग और जान-बूझ कर वोमिट करने (बुलिमिया नर्वोसा) तक इसके कई रूप होते हैं. मॉडल्स जैसी काया की अपनी इस चाहत में तमाम किशोरियां कुपोषण एवंकमी का शिकार बन जाती है. भोजन की अत्यधिक कमी से प्रजनन क्षमता बुरी तरहसे प्रभावित होती है.

दबाव से थक रही किशोरावस्था : परीक्षा का समय है? परीक्षा वाले दिन से पहले रात में देर तक जाग कर तैयारीकी जाती है. अध्ययन में कुछ ही सत्रों में बहुत सारे विषयों को एक साथपढऩा, ग्रुप स्टडीज, नकल करने के लिए कोड्स तैयार करना इत्यादि कालेज परीक्षाओं का समय आने पर होता ही है. इसमें सहपाठियों का दबाव मिला दें तो क्या कहने. हालांकि सुनने में यह सब बहुत अच्छा लगता है लेकिन परीक्षाओं के दौरान किशोर/किशोरियों पर परफार्मेंस स्ट्रेस एवं अन्य दबाव काफी ज्यादा रहते हैं. इस तरह का दबाव लंबी अवधि तकबने रहने पर हमारे सिस्टम में हार्मोन संबंधी उथल-पुथल पैदा हो जाती है. प्रजनन क्षमता घटती है. कुछ समय सिर्फ अपने लिए निकालने और कोई शौक पालनेसे आपकी मानसिक अवस्था को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने में काफी मदद मिल सकती है.

मुंहासों से छुटकारा पाने वाली दवाओं का सेवन : मुंहासों की समस्या से तो हर दूसरी लड़की परेशान है. डाक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के बिना मैडीकल स्टोर से खरीदी जानेवाली मुहांसों पर रोकथाम लगाने वाली कोई भी गोली आपको मुंहासों से निजात दिला देती है लेकिन ऐसी गोलियों को खाने से पहले जरारुकें और सोचें क्योंकि यह गोली हार्मोन की गोली हो सकती है, जो गर्भनिरोधक गोलियों जैसी ही होती है. गर्भनिरोधक गोलियों के अधिक सेवनसे हार्मोन का स्वाभाविक चक्र प्रभावित होता है.

प्रतिबंधित पदार्थों का सेवन : मां-बाप प्रतिबंधित पदार्थों के सेवन से बचने के लिए किशोर/किशोरियों को हमेशा चेतावनी देते हैं लेकिन उत्सुकता एवं प्रलोभन के कारण वे ड्रग्स, शराब एवं सिगरेट का आनंद उठाने के लालच से खुद को रोक नहीं पाते. ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनसे पता चलता है कि जीवन भर के लिए लगने वाली लत किशोरावस्था के दौरान ही लगती हैं. इन बुरी आदतों से शरीर कापूरा तंत्र बदल सकता है और सबसे ज्यादा प्रभावित होता है प्रजनन तंत्र. प्रजनन अक्षमता इसी के परिणाम स्वरूप पैदा होती है। प्रजनन क्षमता में सुधारलाने के लिए विशेषज्ञ शराब एवं सिगरेट से दूर रहने की सलाह देते हैं.

जिम एवं स्पोर्ट डायरी : लगभग सभी किशोरियां स्टार्स एवं मॉडल्स के गठीले एवं अच्छी काठी वाले शरीरको देखकर ललचाती हैं एवं उनके बारे में सपने भी देखती हैं. इतनी प्रेरणासभी दुबले पतले लड़कों को मसल बिल्डिंग के लिए जिम में भाग कर जाने के लिएपर्याप्त है लेकिन लड़कियों को आकर्षित करने के लिए किया गया यह प्रयास यदिसही तरीके से नहीं किया गया तो उन्हें भारी पड़ सकता है. वर्कआऊट के कारणलगने वाली चोट प्रजनन क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है. इसी तरहखेल में अधिक उत्साह रखने वालों के लिए प्रशिक्षण की मात्रा एवं तीव्रताके कारण चोटग्रस्त होने की संभावना बढ़ जाती है. शरीर सौष्ठव की दौड़ मेंतेजी के साथ शुरूआत करने के इच्छुक एनाबॉलिक स्टीरॉइड्स की शरण लेते हैंकिन्तु इन स्टीरॉइड्स के लम्बे समय तक सेवन करने से प्रजनन क्षमता कोनुक्सान पहुंच सकता है. आपको सुनिश्चित करना चाहिए कि आप व्यायाम उचितमार्गदर्शन में ही करें. एनाबॉलिक ड्रग के सेवन एवं अत्यधिक प्रशिक्षण सेबचना चाहिए.

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लाईफ स्टाइल – त्वचा को बनाएं सुंदर और चमकदार

सर्दियोंके मौसम में त्वचा का रूखा और बेजान हो जाना आम बात है. हालांकि महिलाओं को इस मौसम में यह बात सबसे ज्यादा परेशान करती है. गौरतलब है कि इस मौसम मेंस्किन रूखी इसलिए हो जाती है क्योंकि खुश्क हवा स्किन के नीचे से नमी सोखलेती है. स्किन में नमी की कमी होने से सेल्स की बाहरी सतह सूखी होकर चटखनेलगती है और नमी का सुरक्षा कवच हटते ही अंदरुनी स्किन पर भी मौसम का असरहोने लगता है. ऐसी संवेदनशील स्किन पर स्थायी या अस्थायी लकीरें अपना घरबनाने लगती हैंजिसके परिणामस्वरूप चेहरे पर समय से पहले ही बुढ़ापे केनिशान दिखाई देने लगते हैं.

इसलिए इस मौसम में जरूरी है अपने नाजुक और कोमल त्वचा पर थोड़ा ज्यादा ध्यान देने की. आईए आपको बताते हैं विंटर सीजन में कैसे रख सकती हैं आप अपने त्वचा को चमकदार और खिली खिली.

  • सबसे पहले चेहरे पर अच्छी क्वालिटीका मॉइश्चराइजर लगाएं और फिर फाऊंडेशन लगाएं.
  • शियर फाऊंडेशन अप्लाई करें इससे स्किन में खूबसूरत शाइन नजर आएगी. हैवी पाऊडर या कांपैक्ट लगाने से बचें इससे इस मौसम में स्किन पैची नजर आने लगती है.
  • मेकअप के बेस के लिए एक अच्छी फेस क्रीम का प्रयोग अवश्य करें. यह आपके मेकअप को लंबे समय तक टिकाने में मदद करेगी लेकिन ऐसी क्रीम के प्रयोग से बचें जो नमी छोडऩे लगती है. अगर मॉइश्चराइजर का प्रयोग कर रही हैं तो ऐसाप्रोडक्ट चुनें जो लाइट कंसिस्टैंसी हो ताकि आपकी स्किन उसे पूरी तरह सोख सके.
  • न्यूड मेकअप इस सर्दी में भी हॉट ट्रैंड में बना रहेगा. इसके लिए सबसे ज्यादा ध्यान आपको फाऊंडेशन के कोट पर देना है. यह कोट स्किन टोन को सूट भीकरे और बहुत लाऊड न हो, इसका ध्यान रखें. नैचुरल आई शैडो और मस्कारा जरूर अप्लाई करें. साथ ही हल्का सा ब्लश और नैचुरल लिप ग्लॉस या लिप कलर आपकी लुक को कंप्लीट कर देंगे. आई लाइनर, मस्करा तथा लिप लाइनर आदि वॉटरप्रूफ ही चुनें.
  • ठंड के हिसाब से सिलीकॉन बेस्ड फाऊंडेशन सबसे बढिय़ा विकल्प होगा. बदलते मौसम के लिहाज से पाऊडर मेकअप फाऊंडेशन भी चुना जा सकता है. तेज ठंड मेंलिक्विड फाऊंडेशन न लगाएं.
  • न्यूड शेड से बिल्कुल अलग कलर यूज करने हों तो पार्टीज में आप सुर्ख लालसे लेकर ऑरेंज, बरगंडी, पर्पल, मैजेंटा या डार्क ब्राऊन कलर भी लिप्स परअप्लाई कर सकती हैं लेकिन इसमें बाकी के मेकअप को बैलेंस रखें तथा अपने मेकअप को हैवी न होने दें.

इसके साथ ही रखें इन बातों का भी ध्यान

  • इस मौसम में साबुन का कमसे कम प्रयोग करें क्योंकि साबुनसे त्वचाकी शुष्कता और बढ़जाती है.
  • त्वचा को मुलायम और कोमल बनाए रखने के लिए साबुन का प्रयोग कम करना आवश्यक है.
  • मौसम सर्दी का हो या गर्मी का, साधारण गुनगुने पानी से नहाना ही लाभदायक रहता है. इससे जहां त्वचा की रंगत बनी रहती है वहीं सर्दी-जुकाम भी नहीं सताता.
  • बहुत ठंडा पानी सर्दी के मौसम में उपयुक्त नहीं रहता. गुनगुना पानी सही रहता है.
  • अधिक गर्म पानी से न नहाएं. यह त्वचा के लिए हानिकारक होता है और दिन भर ठंड भी लगती रहती है.
  • जाड़े के मौसम में नहाने के बाद नारियल के तेल से त्वचा की मालिश करें, इससे त्वचा की कोमलता बनी रहती है.
  • सर्दी के मौसम में धूप अच्छी लगती है इसलिए धूप का आनंद लें लेकिन सीधे धूप में न बैठें क्योंकि सूर्य की तेज किरणें त्वचा रोग उत्पन्न करती हैं.

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लिव्ह अँन्ड रिलेशनशिप सारख्या संकल्पनानुसार जर कायदेशीर पाठबळ दिले गेले तर ? – वंदना सालसकर-साखले(वरिष्ठ पत्रकार)

लिव्ह अॅन्ड रिलेशनशिप मधील स्रिया व त्यांची मुलं यांना कायदेशीर संरक्षण मिळावे या हेतुने नव्याने आराखडा बनविण्याचे आदेश न्यायालयाने देऊन नक्की काय सुचित व साध्य केले आहे, या संकल्पनेला आता कायदेशीर संरक्षण मिळ्याल्या नंतर प्रचलित लग्नसंस्था व विवाह कायदा याचे काय ? किंबुहना मुळातच मोडकळीस आलेल्या कुटुबं संस्था व त्यांचे महत्त्व या अश्या आव्हानात्मक स्थितित कश्यापध्दतीने अबाधित राहिल हा खरा प्रश्नच आहे . बदलत्या सामाजिक स्थितित व जागतिकरणाच्या या जिवघेण्या स्पर्धेत व रेट्यात हरवत चाललेल्या कुटुबंसंस्था व त्यांचे मुल्य अबाधित ठेवण्याचे प्रचंड आव्हान समोर असताना त्यात जर लिव्ह अँन्ड रिलेशनशिप सारख्या संकल्पनानुसार जर कायदेशीर पाठबळ दिले गेले तर येत्या दशकात या समाजव्यवस्थेचे काय चित्र निर्माण होईल याची कल्पनाही करवत नाही , या देशातील लोकशाही ही जशी वैशिष्ट्यपुर्ण मानली गेली आहे तशीच या देशातील कुटुबं व्यवस्थेविषयी जगभरात एक कौतुकास्पद व आश्वासक असे स्थान राहिले आहे . कालानुरूप या व्यवस्थेत काही बदल होत गेले . संयुक्त कुटुबं रचनेच्या जागी विभक्त कुटुबं व्यवस्था अस्तित्वात आली असली तरी या व्यवस्थेचे आपले असे एक सशक्त स्थान कायमच अबाधित राहिले आहे कारण या व्यवस्थेचा पाया हा लग्नसंस्थेवर उभारला गेला आहे हे विशेष . कारण लग्न संस्थेने केवळ दोन मनंच नाही तर दोन पुर्ण कुटुबांची मने जुळविली जातात ,नात्याच्या वाढत्या व घट्ट विणल्या जाणार्या जाळ्यातुन एक सशक्त व भक्कम समाज उभा राहात असतो ज्यातुन केवळ कायदेशीरच नव्हे तर भावनिक व मानसिक ही संरक्षण त्या दोघांना मिळत जाते . लिव्ह सारख्या संकल्पनेला कायदेशीर आधार देऊन एक नव्या समाज संकल्पनेचा विस्तार करून प्रचलित व्यवस्थेलाच छेद देण्याचा हा प्रयत्न का व कश्यासाठी ? व त्यातुन काय साध्य होणार आहे ? अर्थात या सार्यास वेगवेगळे व सुक्ष्म कंगोरे आहेत हे मान्य करूनही ही नवी व्यवस्था या समाजाला कोणत्या दिशेने नेणार आहे किंबुहना यातील सामाजिक व मानसिक संभ्रमाने पुढच्या पिढीवर काय परिणाम होतील याचाही विचार व्हायला हवा . व्यवसायिक स्पर्धा व बदलती रचना यामुळे एका नव्या जीवनशैलीचे वारे वाहु लागले आहेत . माणुस कुटुबापेक्षा वा नातेसंबंधापेक्षा व्यवसायिक पातळीवर जास्त एकत्र राहु लागल्याने व व्यवसायिक वाढत्या स्पर्धेत अधिक असुरिक्षित वातावरणात राहता राहता व्यवसायातील संबंधाना जरा जास्तच महत्त्व येत आहे याच पातळीवर मग शारिरिक व मानसिक जवळीक व बर्याचवेळा त्या मर्यादांचे उल्लंघन अश्या या परिस्थितीत नवीन नात्यांची सुरूवात व त्यातुन एकत्र राहण्याची गरज त्यात जबाबदार्या व बंधने नकोत ही भावना किंबुहना नात्यातील संपुर्ण स्वातंत्र्य व अस्तित्व यातुन लिव्ह अँन्ड या संकल्पनेचा जन्म झाला . कायदेशीर व सामाजिक कोणतेच बंधन नसलेल्या या नात्यातील अखेर बळी हा त्यात सुरूवातीला आनंदाने सहभागी झालेल्या स्रीयाच ठरू लागल्या , कोणतेच बंधन नसल्याने त्याच त्याच नात्याला उबलेला पुरूष हा जेवढा सहजरित्या कालांतराने बाहेर पडु लागला तेवढ्याच सहजतेने आमच्या पारंपारिक संस्कारात वाढलेल्या स्रियांना या नात्यातुन बाहेर पडणं शक्य होतं का ? अश्यावेळी या स्रियांना जगण्याचा कोणता आधार शिल्लक राहतो ? स्री एकटी असेल तरी ठीक पण या संबधातुन निपजलेल्या अपत्याची जबाबदारी अंतिमतः कोणावर असणार ? त्यात हे संबंध दुसरेपणाचे असतील तर कोणत्याच पातळीवर या स्रीया व मुलं यांना न्याय मिळु शकत नाहीत मग या संबंधातील या स्रीया व मुलांनी दाद मागायची कुठे व कोणाकडे? बदलत्या समाज रचनेतील हा दिवसोंदिवस वाढता गंभीर प्रश्न म्हणावा लागेल मग अश्यावेळी न्यायालयाने दिलेला हा आदेश बर्यापैकी दिलासा देणारा म्हटला तरी शेवटी प्रचलित समाजरचनेला आव्हान देऊन संपुर्ण कुटुबंसंस्थाच धोक्यात आणण्यार्या या संकल्पनेला आता कायदेशीर पाठबळ देऊन रूजविण्यात खतपाणी घालायचे का ? हा विचार आता पुन्हा एकदा करायची गरज निर्माण झालेली आहे. एक शक्यता अधिक दिसते ती ही की कायदेशीर बंधन आल्यामुळे पुर्वी इतक्याच बिधंस्तापणाने पुरूष हे संबंध आता ठेवतील का? दुसरे पणाचे संबंध ठेवताना विचार करतानाच पहिलेच संबंधातही मग लग्नच केलेले काय वाईट ? असाही विचार अधिक बळकट होण्याची शक्यता अधिक वाटते

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नेल्सन मंडेला के चले जाने से पूरी दुनिया शोक में

जोहानिसबर्ग : दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद विरोधी आंदोलन के पुरोधा और पहले अश्वेत राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला का 5 दिसंबर को सुबह तड़के ही निधन हो गया. 95 वर्षीय मंडेला पिछले कुछ महीनों से फेफडों में संक्रमण के शिकार थे और जोहानसबर्ग स्थित अपने घर में स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे. उनके निधन से पूरी दुनिया में शोक का माहौल है. भारत रत्न नेंलसन मंडेला को श्रद्धांजलि के बाद 6 दिसंबर को राज्यसभा की कार्रवाई दिन भर के लिए स्थगित कर दीगई. सभापति हामिद अंसारी ने सदन की कार्रवाई शुरू होने पर सदस्योंको मंडेला के निधन की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि मंडेला हमारे समय के महान हस्ती थे.

आपको बता दें कि दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद को खत्म करने में अग्रणी भूमिका निभा कर दुनियाभर में अन्याय के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक बन चुके नेल्सन मंडेला ने नासिर्फ पूरे अफ्रीकी महाद्वीप को बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों को भी स्वतंत्रता की भावना से ओत-प्रोत किया था. अपनी जिंदगी के स्वर्णिम 27 साल जेल की अंधेरी कोठरी में काटे मंडेला अपने देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने थे जिससे देश पर अब तक चले आ रहे अल्पसंख्यक श्वेतों के अश्वेत विरोधी शासन का अंत हुआ और एक बहु-नस्ली लोकतंत्र का उद्भव हुआ.

आपको बता दें कि मंडेला महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धांतों, विशेषकर वकालत के दिनों में दक्षिण अफ्रीका के उनके आंदोलनों से प्रेरित थे. मंडेला ने भी हिंसा पर आधारित रंगभेदी शासन के खिलाफ अहिंसा के माध्यम से संघर्ष किया. 95 वर्षीय मंडेला का भारत में बहुत सम्मान है. 1990 में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया. मंडेला 27 साल जेल में बिताने के बाद देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने थे. उन्हें 1993में नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उनका चमत्कारी व्यकित्व, हास्य विनोद क्षमता और अपने साथ हुए दुव्यर्वहार को लेकर कड़वाहट ना होना, उनकी अद्भुत जीवन गाथा से उनके असाधारण वैश्विक अपील का पता चलता है. दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी शासन के खिलाफ मंडेला की लड़ाई को भारत में अंग्रेजों के शासन के खिलाफ गांधी की लड़ाई के समान समझाजाता है.

'सत्य और अहिंसा'के लिए गांधी की हमेशा प्रशंसा करने वाले मंडेला ने 1993 में दक्षिण अफ्रीका में गांधी स्मारक का अनावरण करते हुए कहा था, 'गांधी हमारे इतिहास का अभिन्न हिस्सा हैं क्योंकि उन्होंने यहीं सबसे पहले सत्य के साथ प्रयोग किया, यहीं उन्होंने न्याय के लिए अपनी दृढ़ता जताई, यहीं उन्होंने एक दर्शन एवं संघर्ष के तरीके के रूप में सत्याग्रह का विकास किया.' उल्लेखनीय है कि मंडेला का जन्म 1918 में केप ऑफ साउथ अफ्रीका के पूर्वी हिस्से के एक छोटेसे गांव के थेंबू समुदाय में हुआ था. उन्हें अकसर उनके कबीले 'मदीबा' के नाम से बुलाया जाता था. मंडेला का मूल नाम रोलिहलाहला दलिभुंगा था. उनकेस्कूल में एक शिक्षक ने उन्हें उनका अंग्रेजी नाम नेल्सन दिया. 1944 में एवेलिन मैसेके साथ उनकी पहली शादी हुई जिनसे उनके चार बच्चे हुए. 1958 में दोनों कातलाक हो गया. इसके बाद मंडेला ने वकालत शुरू कर दी और 1952 में ओलिवरटांबो के साथ मिलकर देश के पहले अश्वेत वकालत संस्था की शुरुआत की. 1958में मंडेला ने विनी मादीकी जेला से शादी की जिन्होंने बाद में अपने पतिको कैद से रिहा कराने के लिए चलाए गए अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

नेल्सन मंडेला की मौत पर दुनिया में शोक : उनके मृत्यु पर भारत के राजनेताओं ने भी दुख व्यक्त किया.

राष्ट्रपतिप्रणब मुखर्जी ने नेल्सन मंडेलाके निधन पर दुख जताया.

मनमोहन सिंह(प्रधानमंत्री):इंसानों के बीच मसीहा समान मंडेलानहीं रहे. उनका निधन जितनी बड़ी क्षति दक्षिण अफ्रीका के लिए उतनी ही भारतके लिए भी. वो एक सच्चे गांधी वादी इंसान थे.

बराक ओबामा(राष्‍ट्रपति, अमेरिका)  :मैं उन लाखों लोगों में से एक हूं, जिन्होंने नेल्सन मंडेलाके जीवन से प्रेरणा ली है. मेरा पहला राजनैतिक कार्य-ऐसी पहली चीज, जोमैंने कभी किसी नीति, मुद्दे या राजनीति से संबद्ध की हो, वह रंगभेद काविरोध था.

डेविड कैमरन(प्रधानमंत्री, ब्रिटेन) : हमने अपना हीरो खो दिया. एक चमकते सितारे ने दुनिया को अलविदा कह दिया.

बान की मून(महासचिव, संयुक्त राष्ट्र) : मंडेला को न्याय का मसीहा हैं. उन्होंने कई लोगों के जीवन को प्रकाशमान किया.

नरेंद्र मोदी(भाजपा प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और गुजरात के मुख्यमंत्री) : दुनिया ने शांति और अहिंसा का एक दूत खो दिया है.

राजनाथ सिंह(अध्यक्ष,भाजपा) : सुबह नेल्सन मंडेला जीके निधन के बारे में पता चला. वो एक इंस्पाइरिंग हीरो थे, जिन्होंने लोगोंको न्याय दिलाने और भेदभाव मिटाने के लिए जंग लड़ी.

शिवराज सिंह चौहान(नेता, भाजपा)  : ये मानवता के लिए एक दुखद दिन है. दुनिया कभी भी नेल्सन मंडेला को नहीं भूलेगी. उनके विचार और शिक्षा हमारे साथ हमेशा रहेगी.

सुषमा स्वराज(विपक्ष नेता) : जीवन और मृत्यु का आपस मे शाश्वत संबंध है. जो आया है, वह जायेगा लेकिन कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जो अमर हो जाते हैं. नेल्सन मंडेला ऐसा ही काम करके गए. रंगभेद, असमानता, दमन केखिलाफ संघर्ष में 27 वर्ष से अधिक समय तक जेल में रहे लेकिन इसका कोई प्रभाव उन पर नहीं पड़ा.

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शिवसेना में मिलिंद नाम का बवंडर

शिवसेना छोड़नेवाले सभी नेताओं के निशाने पर मिलिंद नार्वेकर सामान्य शिवसैनिकों के सामने बड़ा प्रश्न क्या कारण है जो नार्वेकर की सुनी जा रही है?

मुंबई(चंदन पवार):

शिवसेना में जो हंगामा मचा हुआ है उसे देख एक प्रश्न निर्माण हो रहा है क्या किसी भी नेताके लिए पी.ए.पद धारण करनेवाला व्यक्ति कितना महत्व रखता है? यह व्यक्ति इतना महत्वपूर्ण होता है जिसके लिए पुराने साथियों को भी छोड़ा जा सकता है. परंतु यह पी.ए.पदवाला व्यक्ति क्या सभी नेताओं को अपनी उंगली पर नचाता है या नहीं या यह सिर्फ शिवसेना में ही ऐसा हो रहा है? इन सभी प्रश्नों को लेकर आज शिवसैनिक असमंजस की स्थिति में है क्योंकि एक नहीं दो नहीं बल्कि कहीं महत्वपूर्ण नेता शिवसेना को छोड़ गए है जो किसी वक्त अपनी बड़ी छाप रखते थे.

मिलिंद केशव नार्वेकर जो आज शिवसेना पक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे के निजी पी.ए. है जो उनके सभी कामों का ख्याल रखते हैं. यह नार्वेकर कभी शिवसैनिक हुआ करते थे बाद में मालाड के एक विभाग में गटप्रमुख उसके बाद जब उद्धव ठाकरे और उनका संपर्क हुआ तो चाणाक्ष और धुर्तमिलिंद नार्वेकर धीरे-धीरे उद्धव ठाकरे के मन पसंद व्यक्ति बन गएतो बस क्या तब से लेकर अबतक शिवसेना में जो भी बड़े भुकंप आए उसके लिए इनको जिम्मेदार ठहराया जा रहा है कभी शिवसेना के भास्कर जाधव नारायण राणे, राज ठाकरे और अब मोहनरावले इन सभी कद्दावर नेताओं ने मिलिंद नार्वेकर की स्टाईल को गलत ठहराया है. शिवसेना पक्ष प्रमुख के लिए जनता और उनके नेता महत्वपूर्ण है या नहीं? यह सवाल अब सामान्य शिवसैनिक पूछ रहा है. एक आम शिवसैनिक जो अपने नेता को ईश्वर का दर्जा देता है अगर वह ईश्वर ही अपने आम शिवसैनिक को नहीं मिलता है और ऐसे ईश्वर को मिलने के लिए पीए नामक गतिरोधक को पार करने के बाद अगर दर्शन होगा तो अपना दुखड़ा लिए हुए आम शिवसैनिक कहां जाएंगे? सांसद मोहन रावले इनकी बातों परअगर गौर किया जाए तो उनका कहना था कि वह चार सालों से उद्धव ठाकरे से नहीं मिल पाए हैं. इसके लिए उन्होंने मिलिंद नामक बवंडर को जिम्मेदार ठहराया है.

आज महाराष्ट्र में किसी भी पार्टी के नेता से बात करनी हो तो वह बात करने के लिए आसानी से उपलब्ध होते हैं परंतु उद्धव ठाकरे इनसे अगर बात करती है तो कई मोड़ से गुजरना पड़ता है यह सच्चाई है. तो क्या उद्धव ठाकरे इस बात की तरफ ध्यान देंगे या नहीं? अगर इसी तरह एक-एक करके अच्छे-अच्छे नेता शिवसेना से निकलते जाएंगे. तो क्या शिवसेना अपनी अस्तित्व रखेगी? यह बड़ा सवाल है. इस घटना के बाद स्वर्गीय बाला साहेब ठाकरे का एक निर्णय जनता को आज भी याद है वह है. 6 दिसंबर 1991 के समय विधानसभा के नागपुर अधिवेशन के समय छगन भुजबल ने शिवसेना छोड़ी और उनके साथ वह 15 से 16 विधायकों को लेकर अलग हुए थे. तब बाला साहेब ठाकरे ने उनको सेना से निकाल दिया था परंतु छगन भुजबल ने सेना क्यों छोड़ी इसका कारण बालासाहेब ठाकरे ढूंढ निकाला. जिस मनोहर जोशी की वजह से छगन भुजबल अलग हुए उनकोबाला साहेब ठाकरे ने विरोधी पक्ष नेता के पद से हटा दिया यह निर्णय बहुत क्रांतिकारी था क्योंकि सामान्य जनता और नेता को बाला साहेब ठाकरे बड़ा मानते थे. परंतु आज उद्धव ठाकरे, किन वजह से नेता शिवसेना छोड़ रहे हैं उन कारणों का पता ही नहीं लगाना चाहते या चाहकर भी निर्णय नहीं लेना चाहते हैं यह असमंजस की स्थिती सामान्य शिवसैनिकों में है.

अगर एक कहानी पर ध्यान दिया जाए तो एक आदमी की जान के बदले सौ जाने बचती है तो किसे बचाना चाहिए, वह एक आदमी को या सौ आदमियों को? इसका जवाब उद्धव ठाकरे को ढूंढना पड़ेगा. आज यह बहुत जरूरी हो गया है. क्योंकि किसी भी राजा को मिलने के लिए राजा का घर प्रजा के लिए बिना रूकावट के खुले रहने चाहिए. तभी जाकर वो राजा प्रजा में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है और उसका नतीजा उसकी सल्तनत बनी रहने में होता है.

इस घटना के बाद जितने भी शिवसैनिकों से बात हुए लगभग सभी शिवसैनिकों ने मिलिंद नामक बवंडर को दोषी ठहराया. उनका यहभी कहना था किहम आज भी उद्धव जी से सीधे-सीधे मिल नहीं सकते हैं. इस बात का हमें बड़ा दुख होता है. इसका मतलब तो यही हुआ कि जिस तरह आज कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से कोई भी छोटा आदमी नहीं मिल सकता है उसी तरह कीयह बात हो गई. अब इन सभी घटनाओं के बाद क्या उद्धव ठाकरे अपने और सामान्य शिवसैनिकों के बीच की दूरियों को कम कर पाएंगे क्योंकि कोई एक झूठ बोल सकता है सारे नहीं…

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बिकनी में नजर आएंगी सोहा

मुंबई(पिट्स फिल्म प्रतिनिधि) : पिछले कुछ दिनों से सोहा अली खान के बिकनी पहनने की बात बॉलीवुड में फैली हुई थी लेकिन अब सोहा का बिकनी अवतार सामने आ गया है. गौरतलब है कि सोहा अली खान की बिकनी का पोस्टर सब के सामने आ गया है. इस शूट से साफ़ झलक रहा है कि सोहा अपनी अगली फ़िल्म 'मि. जो बी कारवाल्हो' के लिए बेहद एक्साइटेड हैं.

आपको बता दें कि 3 जनवरी को रिलीज़ होने वाली ये फ़िल्म, सोहा के लिए काफी अलग लग रही है. सोहा ने ब्लू कलर की बिकनी पहनी हुई जिसमें वह काफी हॉट लग रही हैं और वह लोगों का ध्यान भी अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं.

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सबसे भ्रष्ट देशों की सूची में भारत 94 वें स्थान पर

नई दिल्ली : दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों की सूची में भारत को 94 वें स्थान पर है. बता दें कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की जारी ताजा रिपोर्ट में सबसे भ्रष्टदेशों की सूची में भारत को 94वें स्थान पर रखा गया है. पड़ोसी पाकिस्तानसूची में 127वें और बांग्लादेश 136वें स्थान पर है. सूची में थाईलैंड 102 वें, मेक्सिको 106ठे, मिस्र 114वें, नेपाल 116वें, वियतनाम 116वें और ईरान 144वें स्थान पर है.

गौरतलब है कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के करप्शन परसेप्शन सूचकांक 2013 में 177 देशों को शामिल किया गया है और इसमें से दो तिहाई देशों को शून्य (सबसे भ्रष्ट) और 100 (स्वच्छ) के पैमाने पर 50 से कम अंक मिले.

सूची में पहले स्थान पर 91 अंकों के साथ डेनमार्क और न्यूजीलैंड ने साझेदारी की है. फिनलैंड 89 और सिंगापुर 86 अंकों के साथ क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे. अफगानिस्तान, उत्तर कोरिया और सोमालिया ने आठ अंक के साथ सबसे निचले स्थान के लिए साझेदारी की. भारत को 36 अंक मिले.

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