प्रश्न: बच्चों की आदतों को सही दिशा कैसे दी जाए? उत्तर: जन्म के बाद तीन वर्ष तक बच्चे जो कुछ मिले उसे मुंह में डालते हैं और हर वस्तु को स्पर्श करने की चेष्टा करते हैं. ऐसे में मां का उत्तरदायित्व बहुत बढ़ जाता है. उसे बच्चे की रक्षा के साथ उसके स्वास्थ्य और उसमें अच्छे संस्कार डालने की जिम्मेदारी भी उठानी पड़ती है. बच्चे में सर्जनात्मक क्रियाओं को बढ़ावा देने के लिए चित्ताकर्षक खिलौने, रंगीन चॉक, पेंसिल, प्लास्टरकिट आटा आदि के दर कुछ बनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. घर के काम करते समय बीच बीच में बच्चों को खेल में लगा कर उन्हें व्यस्त रख सकती हैं. स्लेट, पाटि पर रंग आदि लगाने में बच्चों को बहुत आनंद आता है. बच्चे जब 5-6 वर्ष के हो जाएं तो उन्हें क्रयॉन से यहां न करो, वहां न छुओ आदि नहीं कहना चाहिए. यदि नाकारात्मक आदेश देना कि वह दीवारें आदि गंदा करता है तो उसे सही जगह बतानी चाहिए. जैसे पेपर या प्लेट जिस पर वह रंग लगा सकता है. यदि वह बहुत कुदता है और शोर मचाता है तो उसे यहां पर शोर मत करो कहने के बजाय उसे सही जगह बता देनी चाहिए जहां वह खेले, कूदे. रात को सोने के समय मां और पिता का साथ बहुत आवश्यक होता है. उस समय उसे कोई कहानी पढ़कर सुनाए. गीत गाए या लोरी आदि सुनाए जिससे उसका मन शांत और प्रसन्न होगा. कुछ भी बात करें ऐसे में बच्चा बहुत ग्रहणशील स्थिति में होता है और ऐसे में कही गई बातें, बच्चे के मन पर गहरा प्रभाव डालती है. खाना एक महत्वपूर्ण कार्य है. खाने में जूठा नहीं छोड़ना, उंगलियों को न चाटना ऐसे नियम ना लादें जाएं. खाना यदि थाली में रह भी जाए तो बच्चों को जबरदस्ती, कठोरता से खिलाने के बजाय उनको कहना चाहिए कि चलो इसमें से थोड़ा चिड़िया को, कौए को खिलाओ इससे वह अपना हिस्सा बांटना सीखेगा जो एक महत्वपूर्ण बात है. प्रश्न: 6 से 10 वर्ष के बच्चों को रोज के जीवन में अनुशासन कैसे सिखाया जाए? उत्तर: सबसे पहले तो माता-पिता को स्वंय अनुशासन में रहना होगा. जो नियम वे बच्चे को सिखाना चाहते हैं उनका पालन वे पहले स्वंय करें. बच्चे कहने से इतना नहीं सीखते जितना देख कर अनुकरण करते हैं. उनके सामने एक आदर्श होगा तब भी वे उसको देखकर उसके जैसा बनना चाहेंगे. उनके साथ खेलना, साथ प्रार्थन करना, भोजन करना आदि से वे 'पारिवारिक संबंधों' से जुड़ते हैं. आपस में एक मैत्री भाव विकसित होता है. प्रश्न: बच्चों को सिखाने के समय किस तरह का व्यवहार करना चाहिए? उत्तर: बच्चों के साथ व्यवहार करने के उन्हें कुछ सिखाने में चार तरीके अपनाने पड़ते हैं. साम: किसी भी बात को पहले बच्चों क प्यार से समझाना चाहिए. अगर आप ऐसा करेंगे तो मुझे(मां/पिता) को अच्छा लगेगा. अच्छे कार्य के परिणाम अच्छे होंगे उन्हें यह प्यार से समझाना चाहिए. उनकी भावनाओं को समझ कर बात समझानी पड़ेगी. बच्चे ऐसी बातें यदि तर्क दे कर सच्चाई से समझाई जाए तो अवश्य समझ लेते हैं. दाम: इस तरीके से बच्चों को जो अच्छा लगता है उसकी याद दिलाकर मां उनके लिए वह चीजें बना कर देनी चाहिए. दूध पियोगे तो तुम जल्दी खेलने जा सकोगे. अच्छी तरह स्कूल का काम पूरा करोगे तो पुरस्कार मिलेगा. वह पुरस्कार चॉकलेट या उसकी पसंद के खाने की चीज कुछ भी हो सकती है. इस प्रकार अच्छा कार्य करने पर सच्चाई से प्रशंसा करें. बच्चों के मन में यह बात बैठ जाती है कि मुझे अच्छा काम करना है और उससे फायदा होता है. दंड: इसका अर्थ है कुछ सजा मिलनी या दुखद स्तिथी आनी. बच्चों को कमरे में बंद करना, पीटना आदि नाकारात्मक स्थितियां इनसे दंडित होकर उनमें क्रोध बढ़ता है. दंड का उपयोग इस तरह करें कि आप उससे कुछ देर तक बात ना करें, मां कहे कि मैं उपवास करूंगी या उसे किसी पसंद की चीज से थोड़े समय के लिए वंचित कर दें. ऐसी स्तिथी में मां को कष्ट उठाते देख कर वो दुखी होता है. उन्हें यह समझ आती है कि कोई बुरा कार्य करने पर उसका परिणाम भुगतना पड़ता है. वे फिर ऐसी स्थिति से बचते हैं, उन्हें समझ आती है. भेद: अर्थात विवेक बुद्धि से सोच समझकर बदलाव लाने के लिए कड़ी नियमों का पालन करना जैसे जहां उसके अच्छे मित्रों का संग न हो वहां से स्कूल बदल देना. उस परिस्थिति को ही बदल देना. 12 वर्ष के बाद अनुशासन के लिए कोई सीधे आदेश न देकर बच्चों के अच्छे कार्यों की प्रशंसा करें. उनकी गलतियों को बार बार टोकने के बजाय उन्हें ऐसी जगहों पर ले जाईए जहां के वातावरण में उन्हें अच्छे संस्कार मिले. घर पर अच्छी पुस्तकें ला कर, अच्छी चीजे दिखा, बताकर उनमें ऐसी रूचियां विकसित करने से घर का वातावरण ही उन्हें बहुत कुछ सीखा देगा. माता पिता का अच्छा आचरण उनके लिए एक आदर्श बन जाता है जिसका वे अनुकरण करते हैं. |
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